Mar 11, 2011

गरीबों की जमीन पर सूर्यकुण्ड नहीं नगर निगम की योजना हाईकोर्ट ने की ध्वस्त


माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति श्री मनिन्द्र मोहन श्रीवास्तव की एकलपीठ ने भिलाई नगर निगम की महत्वाकांक्षी योजना पर न्यायदण्ड चलाते हुए गरीबों की जमीन पर बनने वाले सूर्यकुण्ड की योजना पर विराम लगा दिया है।

वर्ष 1970 में भिलाई नगर के प्रारंभिक दिनों में तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने गरीबों के हितों को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन साडा भिलाई के माध्यम से शारदा आवासीय योजना लागू की जिसमें याचिकाकर्ता रामसिया गुप्ता व अन्य को वर्ष 1977 में आवासीय प्लाट लीज एग्रीमेंट करके साडा द्वारा दिए गए। साडा भिलाई के भिलाई नगर निगम में विलयन के बाद भी वर्ष 2003 तक प्लाट बांटे गए। इसी बीच राजनीतिक परिदृश्य बदल जाने के बाद भिलाई नगर निगम के कुछ विघ्नसंतोशी पार्शदों को तत्कालीन विधायक श्री बदरूद्दीन कुरैशी द्वारा गरीबों के लिए किए जा रहे प्रयासों से तकलीफ होने लगी । वर्ष 2003 में शारदा आवासीय योजना को खत्म कराने के उद्देश्य से कुछ पार्शदों ने निगम की बैठक में उक्त मुद्दे को उठाया जिसे राज्य सरकार ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए स्थगित कर दिया। इसी बीच वर्ष 2004 में निगम की 10/05/2004 को होने जा रही बैठक किन्हीं कारणों से टल गई और 27/05/2004 को रखी गई । छत्तीसगढ़ नगरपालिक निगम अधिनियम की धारा 31 के अनुसार किसी भी टल जाने वाली बैठक के पुनः आहूत होने पर केवल वही मुद्दे विचार किए जा सकते हैं जिन पर पहले विचार होना था और कोई नया मुद्दा विचार में नहीं लिया जा सकता। इस विधिक प्रावधान को नजरअंदाज करते हुए कुछ पार्शदों के अभ्यावेदन को स्वीकार करते हुए निगम आयुक्त ने शारदा आवासीय योजना का मुद्दा 27/05/2004 की बैठक में एजेंडे में शामिल करवा लिया और यह प्रस्ताव पारित कर दिया गया कि जिन हितग्राहियों ने अपने प्लाटों में निर्माण नहीं किया है उनके लीज एग्रीमेंट निरस्त कर दिए जाएं। यही नहीं तत्परता दिखाते हुए निगम आयुक्त ने राज्य सरकार को पहले दिए गए स्थगन के बारे में बताए बिना उक्त प्रस्ताव पर सहमति भी प्राप्त कर ली।
उक्त अवैध कार्य को अंजाम देते हुए निगम ने याचिकाकर्ता समेत अनेक लोगों के लीज एग्रीमेंट निरस्त करते हुए उक्त भूमि पर सरोवर धरोहर योजना के तहत सूर्यकुण्ड बनाने की योजना पर कलेक्टर से सहमति प्राप्त कर टेंडर जारी कर दिया। घर से बेघर होने जा रहे निम्न आयु वर्ग के गरीब लोगों की तरफ से वर्ष 2004 में माननीय छग उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई जिसमें दिनांक 06/10/2004 को माननीय उच्च न्यायालय ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। वर्ष 2008 में उच्च न्यायालय ने पृथक याचिका प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता के साथ याचिकाकर्ताओं को उक्त जनहित याचिका को वापस लेने का आदेश पारित किया। इसके पश्चात याचिकाकर्ता रामसिया गुप्ता व अन्य ने अधिवक्ता जितेंद्र पाली तथा वरूण शर्मा तथा याचिकाकर्ता राजेंद्र शर्मा ने अधिवक्ता आशीश सुराना के माध्यम से याचिका प्रस्तुत की तथा तर्क रखा कि टली हुई बैठक में लिया गया निर्णय विधिमान्य नहीं है साथ ही राज्य शासन को धोखे में रखकर ली गई सहमति भी अवैध है।
नगर निगम भिलाई की ओर से याचिका के संबंध में आपत्ति की गई की लीज एग्रीमेंट सिविल वाद की विषयवस्तु है और याचिका खारिज की जानी चाहिए। हितग्राहियों तथा याचिकाकर्ताओं ने प्लाट लेने के बाद कोई निर्माण नहीं किया इसलिए शारदा आवासीय योजना बनने के 5 वर्ष बाद स्वतः समाप्त हो गई और अब कुछ नहीं किया जा सकता। माननीय उच्च न्यायालय ने समस्त तर्कों तथा प्रकरण के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह धारित किया कि जब प्रशासन का कोई आदेश संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन करता हो तथा मनमाना हो तो उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के अंतर्गत कार्यवाही करने में सक्षम है तथा याचिकाकर्ता अपने प्लाट में निर्माण कार्य इसलिए भी नहीं कर पाए कि निगम द्वारा प्लाट में पहुंच मार्ग, बिजली आदि की कोई व्यवस्था नहीं की। माननीय उच्च न्यायालय ने धारा 31 के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए यह धारित किया की शारदा आवासीय योजना का मुद्दा बैठक में रखा जाना अवैध है तथा राज्य सरकार की सहमति भी अवैध है। इस प्रकार याचिकाकर्ताओं का लीज एग्रीमेंट निरस्त किया जाने वाला आदेश भी अवैध है।

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